रात आधी आ चुकी,
सपनो में जनता जा चुकी,
मैं टक टकी निगाह से,
बड़ी आशा से बड़े राग से,
फोन ले लेटा हुआ,
ख़त्म फिर घंटा हुआ,
ना ख्वाब की ख्वाहिश लगी,
ना सोने को मेरा मन कहे,
ना कम्बल ही ठीक ठाक है ,
मेरा तकिया भी तो उदास है,
सब कुछ सही होता अगर,
मैं सुकून से सोता मगर,
इस नीद को रास्ता बताने,
मेरे ख्वाब को आँखों मे लाने,
मेरे तकिये मेरे कम्बल,
मेरे धरती मेरे अंबर,
तू एक बार लौट जो आये,
मुकम्मल नीद हो जाये,
की हफ्तों हो गए हैं,
भूले हुए है नीद क्या,