ये जरा सा दुख, ज्यादा लग रहा है क्या,
खुशियों में राहु बन ये, हर घड़ी ठग रहा है क्या,
अगर हां , तो जाओ, मां का गिला पल्लू निचोड़ लो,
जो निकले उसे महसूस करो, उसी में खुद को जोड़ लो
कई दशकों से ,
तकलीफों की धार,
परत दर परत ,
इतनी नमी में भी,
किस आस में और कैसे ,
उसी पल्लू में सूख जाती हैं ,
जाओ एक बार और लिपट लो ,
थोड़ा आंसू बहा लो चुपके से ,
चाहे तो जोर से चीख लो,
बस एक बार मां की ये कला सीख लो ,
ये तिल भर की मुस्किल, पहाड़ सी खड़ी है क्या,
ये जीवन रेखा , तेरे हिम्मत रेखा से भी बड़ी है क्या ,
अगर हां ,तो जाओ, पापा के बदुए के पैसे गिनलो,
जो बस सिक्के ही मिलें तो केवल उनकी खनक सुनलो,
हाथ में ठेठा, पैर के छाले,
या रात भर जागने से बना आंखो का घेरा,
एक मुस्कान से ही कैसे छिप जाते थे,
महीने के पहले दिन ही पैसे कहां से और कैसे आते थे ,
जानना हो ,
तो उनका खास जूता, अपने पैरों में पहन लो,
जरा से पास बैठो, कुछ सुनो, कुछ बोलो,
पापा , बहुत भागे हैं आप , थोड़ा तो ठहर लो,