संस्कार

सब भूलते जा रहे है संस्कार अपना
कितना तुक्ष हो गया है विचार अपना

नग्नता भा रही है लोगो को
जिस्म हो गया है व्यापार अपना

झूट का हो रहा है बोल बाला
सत्य खो रहा है अधिकार अपना

किसान मर रहे है भूखें पेट
पेट भर रही है सरकार अपना

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